मोनसन निकासी, वायुमंडलीय परिस्थितियों में मोनसन के खतम या पीछे हटने की प्रक्रिया. Also known as मॉनसून रिट्रीट, it प्राकृतिक मौसम चक्र का महत्वपूर्ण चरण है जो जलस्रोत और कृषि पर गहरा असर डालता है.
इसके साथ ही मौसम, वायुमंडल की दीर्घकालिक स्थितियों का समूह भी बदलता है, और ये बदलाव हमारे दैनिक जीवन में सीधे दिखते हैं। आज हम मोनसन निकासी के प्रमुख पहलुओं को समझेंगे।
मुख्य कारण और प्रभाव
मोनसन निकासी के पीछे मुख्य कारण वायुमंडलीय दाब, वायुमंडल में विभिन्न स्तरों पर दबाव का अंतर और समुद्र की सतह तापमान में बदलाव होते हैं। जब उत्तर-पश्चिमी दिक्कत क्षेत्र से ठंडी हवा आती है, तो मौनसन की ताकत कम हो जाती है और यह धीरे‑धीरे दक्षिण की ओर पीछे हटता है। इसी प्रक्रिया में एल नीनो, प्रशांत महासागर में असामान्य गर्मी की घटना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इन कारणों से बरसात का पैटर्न बदलता है, जिससे जलस्रोत प्रबंधन और कृषि उत्पादन दोनों पर असर पड़ता है।
जब मोनसन पीछे हटता है, तो जलस्रोत, नदियों, तालाबों और जमीन में संग्रहित पानी के स्रोत की भरपूरता घटती है। कई क्षेत्रों में जलाशयों के स्तर धीरे‑धीरे गिरना शुरू हो जाता है, जिससे पीने के पानी की कमी और फसलों के लिए सिंचाई की समस्या उत्पन्न होती है। इस कारण से जलस्रोत प्रबंधन के लिए पूर्वानुमान मॉडल और जलभंडारण तकनीकें आवश्यक हो जाती हैं।
कृषि के लिहाज़ से मोनसन निकासी का असर दोधारी तलवार की तरह है। एक ओर वर्षा की कमी से फसलों की पैदावार घटती है, खासकर धान और गन्ने जैसी जल‑आधारित फसलों में। दूसरी ओर, अचानक तेज़ हवाओं और हल्की बारिश से फसलें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। इसलिए कृषि, आधारित उद्योग जो जमीन पर फसल उगाने से जुड़ा है को मौसम की निगरानी और वैकल्पिक पर्यायी फसल चयन के साथ अनुकूलन रणनीति अपनानी पड़ती है।
मोनसन निकासी के साथ बाढ़ और सूखे दोनों की जोखिम बढ़ जाती है। जब बारिश अचानक रुक जाती है, तो मिट्टी में जल का संचयन नहीं हो पाता और जलभंडारण की क्षमता घटती है, जिससे सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है। वहीं अगर मोनसन के बाद तेज़ बवंडर लाता है, तो बाढ़ जोखिम, अत्यधिक पानी के कारण भूमि एवं संपत्ति को नुकसान बढ़ जाता है। इस दोहरे खतरे को समझकर स्थानीय प्रशासन को इमरजेंसी रेस्क्यू प्लान और जल निकासी नेटवर्क को सुदृढ़ करना चाहिए।
तैयारियों की बात करें तो सरकार और कृषि विभाग के पास अर्ली वार्निंग सिस्टम, जलवायु परिवर्तन की शुरुआती चेतावनी देने वाली तकनीक मौजूद है। इन सिस्टमों से मौसम वैज्ञानिक मोनसन निकासी के पहले संकेत पकड़ लेते हैं और किसानों को समय पर सूचित करके वैकल्पिक फसल बीज, सिंचाई तकनीक या जलभंडारण उपाय सुझाते हैं। व्यक्तिगत स्तर पर किसान अपने खेतों में वॉटर‑टैंकों, रेनवॉटर कलेक्शन सिस्टम और ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों को अपनाकर जोखिम कम कर सकते हैं।
अंत में, मोनसन निकासी सिर्फ एक मौसमीय घटना नहीं, बल्कि एक जटिल पर्यावरणीय प्रक्रिया है जो जलस्रोत, कृषि और बाढ़‑सूखा मैनेजमेंट को आपस में जोड़ती है। नीचे आप देखेंगे कि इस टैग में कौन‑कौन से लेख इस विषय के विभिन्न पहलुओं—कारण, प्रभाव, तैयारियों और वास्तविक केस स्टडीज—पर विस्तार से चर्चा करते हैं। इन लेखों को पढ़कर आप अपने इलाके में मोनसन निकासी से जुड़े चुनौतियों को बेहतर समझ पाएँगे और उचित कदम उठा सकेंगे।
IMD ने मोनसन निकासी की पुष्टि की और छत्तीसगढ़ में गहरी धूसरावस्था के कारण भारी बारिश की चेतावनी जारी की, जिससे किसानों और यात्रियों को सतर्क रहना होगा.