ग्रेच्युटी के नियम बदले: अब एक साल की सेवा में मिलेगी ग्रेच्युटी, 21 नवंबर से लागू

21 नवंबर 2025 से भारत के करोड़ों कर्मचारियों की जिंदगी बदल गई। केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने 29 पुराने श्रम कानूनों को जोड़कर चार नई श्रम संहिताएं लागू कीं — और इनमें सबसे बड़ा बदलाव ग्रेच्युटी का नियम बना। पहले कर्मचारी को ग्रेच्युटी पाने के लिए कम से कम पांच साल लगातार सेवा देनी होती थी। अब? एक साल। बस। ये बदलाव सिर्फ एक नियम बदलने तक सीमित नहीं — ये एक सामाजिक और आर्थिक इंकलाब है।

ग्रेच्युटी का नया नियम: एक साल में मिलेगी रकम

अब जब भी कोई कर्मचारी किसी कंपनी में एक वर्ष तक नौकरी कर ले — चाहे वो स्थायी हो या फिक्स्ड-टर्म — वो ग्रेच्युटी का हकदार हो जाता है। ये बदलाव फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों (FTEs) के लिए खास तौर पर बड़ा राहत है। पहले वो अक्सर एक साल बाद जॉब छोड़ देते थे, और उन्हें ग्रेच्युटी नहीं मिलती थी। अब वो भी उतने ही हकदार हैं जितने स्थायी कर्मचारी। ग्रेच्युटी की गणना वही रही: (बेसिक सैलरी + डीए) × (15/26) × सेवा वर्ष। उदाहरण के लिए, अगर किसी की अंतिम बेसिक सैलरी + डीए 60,000 रुपये है और वो एक साल काम कर चुका है, तो उसे 60,000 × 15/26 = 34,615 रुपये मिलेंगे। ये रकम नियमित तौर पर बढ़ती रहेगी।

क्यों ये बदलाव इतना बड़ा है?

इस बदलाव के पीछे सिर्फ अच्छा इरादा नहीं, बल्कि एक गहरा आर्थिक तर्क छिपा है। दशकों से भारत में कंपनियां फिक्स्ड-टर्म भर्ती करती रहीं — क्योंकि ये उन्हें ग्रेच्युटी से बचाती थी। अब ये बचाव का रास्ता बंद हो गया। इसका मतलब? कंपनियां अब अपने कर्मचारियों को सीधे भर्ती करेंगी, न कि अल्पकालिक कॉन्ट्रैक्ट पर। ये बदलाव न सिर्फ कर्मचारियों के लिए बल्कि उद्योगों के लिए भी लचीलापन लाएगा। एक युवा इंजीनियर जो एक साल के लिए एक स्टार्टअप में जॉइन करता है, अब जानता है कि उसकी मेहनत का एक आर्थिक फल भी मिलेगा।

अन्य बड़े बदलाव: नाइट शिफ्ट, ओवरटाइम, और बराबरी

ग्रेच्युटी के सिर्फ एक बदलाव से नहीं, बल्कि श्रम संहिताओं में कई ऐसे बदलाव हुए हैं जो भारतीय श्रम बाजार को हमेशा के लिए बदल देंगे।

  • महिला कर्मचारियों को अब रात की शिफ्ट में काम करने का अधिकार मिल गया है — बिना किसी विशेष अनुमति के।
  • स्किल्ड और अनस्किल्ड श्रमिकों के बीच न्यूनतम वेतन का भेद खत्म हो गया।
  • हर कर्मचारी को अब नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य है — जिससे बेरोजगारी के झूठे दावों को रोका जा सकेगा।
  • गिग वर्कर्स — जैसे ज़ोमैटो, डिलिवरी बॉय या उबर ड्राइवर्स — के लिए अब बीमा व्यवस्था भी लागू होगी।
  • ओवरटाइम का वेतन दोगुना हो गया है — अगर कोई 10 घंटे काम करता है, तो अतिरिक्त घंटों पर दोगुना भुगतान।
क्या ये सब कानून अभी लागू हो गए हैं?

क्या ये सब कानून अभी लागू हो गए हैं?

हां। 21 नवंबर 2025 से ये सभी नियम भारत के सभी क्षेत्रों में लागू हो गए हैं — कारखाने, खदान, बंदरगाह, तेल क्षेत्र, रेलवे, और यहां तक कि छोटे व्यवसाय भी। ये कोई धीमा, चरणबद्ध लागू होने वाला नियम नहीं है। ये एक तुरंत लागू बदलाव है। अब कंपनियों को अपने पेट्रोल डॉक्टर, डिजिटल मार्केटिंग टीम, या बाइक डिलीवरी वाले को भी एक साल बाद ग्रेच्युटी देनी होगी।

क्या ये बदलाव सिर्फ युवाओं के लिए है?

नहीं। ये बदलाव सभी कर्मचारियों के लिए है — चाहे वो 19 साल के नए नौकरी शुरू करने वाले हों, या 45 साल के अनुभवी कर्मचारी जो पिछले 3 साल फिक्स्ड-टर्म पर काम कर रहे हैं। ये एक ऐसा नियम है जो भारत के श्रम बाजार की बुनियाद को मजबूत करता है। अब युवा लोग जॉब बदलने से डरेंगे नहीं — क्योंकि उनकी हर नौकरी का एक आर्थिक निशान बनेगा। ये बदलाव 'आत्मनिर्भर भारत' की नींव बनेगा — न कि सिर्फ एक नारा।

क्या तैयारी करनी होगी?

क्या तैयारी करनी होगी?

कर्मचारियों को अपने बेसिक सैलरी और डीए का रिकॉर्ड रखना चाहिए। ग्रेच्युटी में प्रशिक्षण अवधि शामिल नहीं होती — इसलिए अगर आपको तीन महीने प्रशिक्षण दिया गया था, तो वो गिने नहीं जाएंगे। अगर आपने 11 महीने काम किया है और अब छोड़ने वाले हैं — तो आपको अभी भी ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी। लेकिन अगर आप 12 महीने पूरे कर लें — तो आपकी ग्रेच्युटी अब आपकी जेब में होगी।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या ग्रेच्युटी अब अनुबंधी कर्मचारियों के लिए भी लागू होगी?

हां, पूरी तरह लागू। अब फिक्स्ड-टर्म कर्मचारी (FTEs) भी एक वर्ष की सेवा पूरी करने के बाद ग्रेच्युटी पाने के पात्र होंगे। यही नहीं, उन्हें स्थायी कर्मचारियों जितने ही अधिकार मिलेंगे — जिससे भेदभाव खत्म होगा।

ग्रेच्युटी की गणना में क्या शामिल होगा और क्या नहीं?

ग्रेच्युटी की गणना केवल बेसिक सैलरी और डीए पर होगी। प्रशिक्षण अवधि, अनुपस्थिति, या बिना वेतन की छुट्टियां शामिल नहीं होंगी। यह नियम स्पष्ट है — सिर्फ वो दिन गिने जाएंगे जिन दिनों आपने वास्तविक रूप से काम किया हो।

क्या इस बदलाव से कंपनियों का खर्च बढ़ेगा?

हां, शुरुआत में खर्च बढ़ेगा — खासकर उन कंपनियों के लिए जो फिक्स्ड-टर्म कर्मचारियों पर निर्भर थीं। लेकिन यह लंबे समय में उन्हें स्थायी, अनुभवी और लायक कर्मचारियों को रखने के लिए प्रेरित करेगा — जिससे उत्पादकता बढ़ेगी।

क्या महिलाओं को अब रात में काम करने का अधिकार मिल गया है?

हां, पहले महिलाओं को रात की शिफ्ट में काम करने के लिए विशेष अनुमति या शर्तें थीं। अब वे अपनी इच्छा और सुरक्षा के आधार पर रात की शिफ्ट में काम कर सकती हैं — बिना किसी बाधा के।

क्या गिग वर्कर्स के लिए बीमा वास्तविक है?

हां, नए श्रम कोड में गिग वर्कर्स के लिए बीमा का प्रावधान है — जिसमें दुर्घटना और बीमारी के लिए बीमा शामिल है। यह भारत में डिजिटल आर्थिक विकास का एक बड़ा कदम है।

क्या ये नियम छोटे व्यवसायों के लिए भी लागू हैं?

हां, ये नियम छोटे व्यवसायों से लेकर बड़े कॉर्पोरेट्स तक सभी पर लागू हैं। अगर कोई व्यवसाय एक या अधिक कर्मचारियों को रखता है, तो ये श्रम संहिताएं उस पर लागू होती हैं — बिना किसी छूट के।

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