एस. पी. तिवारी-लखीमपुर-खीरी
लखीमपुर-खीरी--उ.प्र. शासन और प्रशासन तथा आलाअधिकारियों की उपेक्षा और गलत नीतियों के चलते पुलिस की मजबूरी है कि वह रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार करने को विवश है।वह अलग की बात कुछ पुलिस कर्मचारियों ने अवैध वसूली करने का अधिकार और कमाई का जरिया भी बना रखा है।हलांकि पहली बार उ.प्र.को ऐसा पुलिस महानिदेशक मिला है जो खुद तो ईमानदार है पर नीचे के मातहतों में रिश्वतखोरी  भ्रष्टाचार को लेकर चिंतित है और इसको लेकर वह जरूरी कदम उठाने के लिए प्रयासरत है।पुलिस में फैला भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को रोकने तथा पुलिस को विश्वास में लेने को लेकर उ.प्र.के मुख्यमंत्री वा पुलिस महानिदेशक ने जो अभियान चलाया है उसके अच्छे परिणाम भी सामने आएंगे।कुल मिलाकर पुलिस का मनोबल बढा हुआ है अगर ऐसे में उनकी मजबूरी पर भी ध्यान दिया जाए तो पुलिस सुधार सम्भव है।
पुलिस की विवेचना और गिरफ्तारी तथा न्यायालय वा कोतवाली में कागज और कलम से लेकर पुलिस के अभिलेखों तक में रिश्वत देना पडता है बगैर रिश्वत के उनको भारी संकटों से जूझना पडता है।अगर तमंचा के साथ अभियुक्त को जेल भेजना है तो रिश्वत देनी पडती है।गिरोह बंद अधिनियम, गुंडा अधिनियम, रासुका आदि से पुलिस की जेब ढीली हो जाती है।
पुलिस को जो पैसा विकास के लिए आता है उस पर कोतवाली के प्रभारी को केवल कागजों में रफादफा कर हस्ताक्षर बनवाने के लिए मजबूर किया जाता है,इसी प्रकार के तमाम मानदेय, भत्ता वा अन्य बिल बगैर पैसा दिए उनको नहीं मिलता है आलम यह है कि इस गम्भीर बीमारी में थाना के पुलिस कर्मचारियों के अलावा सबसे अधिक परेशानी का सामना पैरोकार को करना पडता है इस लिए वह भी कागजों को बेचने के लिए मजबूर होते है।पकड़े  गए अभियुक्त को खाना-पानी की व्यवस्था तथा लिखा-पढी तक सारा काम पुलिस को अपनी जेब से ही करना पडता है इसके अलावा जीप में तेल वा दविश आदि को लेकर पुलिस कैसे ईमानदार रह सकती है इस लिए शासन-प्रशासन तथा आला अधिकारियों को पुलिस की यह गम्भीर समस्या जो अंग्रेजों के समय से चली आरही है इसमें तत्काल बदलाव करने को लेकर ठोस रणनीति बनानी होगी तब जाकर पुलिस से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की लाइलाज बीमारी से आम जनता को राहत मिलेगी।



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