प्रदीप आचार्य की कलम से..............................................
आज का युवा साधनों से संपन्न होने के बावजूद उन्नति के मार्ग पर जाने की बजाय अवन्नति की ओर जा रहा है इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वह दिशाहीन होकर दौड़ रहा है। आप एक अच्छे निशानेबाज हो किन्तु आपके निशाने का कोई लक्ष्य नहीं है तो आपका निशाना लगाना अर्थहीन हो जायेगा उसी तरह आप जी जान से मेहनत करते हैं, स्कूल, कॉलेज इत्यादि में अच्छे अंक भी प्राप्त कर लेते हैं किन्तु इन सब के बावजूद आपको हाथ लगती है तो सिर्फ निराशा - - - क्योंकि कभी आपने यह तो सोचा ही नहीं कि जो आप मेहनत कर रहे हैं वह क्यो कर रहे है? इसका परिणाम क्या मिलने की संभावना है? और इस कार्य को बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? ऐसा आप सोचते नहीं है, अगर आपने यह सोच लिया है तो निश्चित ही आपने एक दिशा को चुन लिया है और जब इंसान एक लक्ष्य निर्धारित कर लेता है तो दुनिया की कोई भी ताकत उसे विजयश्री प्राप्त करने से नहीं रोक सकती। 
हम अगर गांडीवधारी अर्जुन की बात करे तो जब उनके गुरू ने सभी शिष्यों से सवाल किए तो अलग-अलग जवाब आया किन्तु अर्जुन का जवाब था चिडि़या की आँख। कहने का मतलब यह है कि बिना लक्ष्य निर्धारित किये आप अपनी मंजिल को प्राप्त नहीं कर सकते। अतः मेरे नौजवान साथियो जीवन में अगर उच्चाइयों को प्राप्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले लक्ष्य बनाये फिर उसका अनुसरण कर तन मन के साथ फिर देखो! आपका जीवन कैसे महकता है। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी के बहकावे में ना आकर अपने विवेक का इस्तेमाल करे, भेड़ चाल से दूर रहे।
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