आज न्यूज़ लाइव टुडे के साहित्य सरोवर में फिर एक बार कवियत्री ममता चौधरी की रचना 'सांसोंं की नाज़ुक सी डोर' रूपी कमल खिला है -

सांसोंं की नाज़ुक सी डोर

कुछ दर्द पनियाले से होते
बह जाते आंखों के रस्ते

कुछ तक़लीफ़ें होतींं कंकड़ सी
चुभती रहतींं आती-जाती सांसोंं  के पैरों में

कुछ पीड़ाएंं होतींं अदृश्य पहाड़ सी
रहती सवार जिस्मो-जां की नाजुक पीठ पर..

हर दर्द लगता है जानलेवा
जान मगर जाती नहीं, अटकी रहती कहीँ

हर तकलीफ लगती आखिरी
मगर अंत से पहले उग आती एक नई

हर पीड़ा लगती असहनीय
मगर सांसोंं की नाज़ुक सी डोर भी
सह जाती चुपचाप, टूटती नहींं ..
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