लखनऊ [K5 News]। पाला बदलने में माहिर नरेश अग्रवाल ने हमेशा सत्ता की देहरी चूमी। प्रदेश में जिस भी दल का परचम लहराया, उसका साथ पकडऩे में उन्होंने देर नहीं की। सपा से राज्यसभा टिकट न मिलने के बाद ही उनके भाजपा में जाने की अटकलें शुरू हो गई थी। माना जा रहा है भाजपा उन्हें 2019 के लोकसभा चुनाव में हरदोई से उतार सकती है। 38 साल में चार राजनीतिक दलों का साथ और एक अपनी पार्टी। हरदोई निवासी 67 साल के नरेश चंद्र अग्रवाल का कुल इतना सफरनामा है। 1980 में वह हरदोई से कांग्रेस के टिकट पर चुने गए। सात बार विधायक चुने जा चुके नरेश सियासत की सौदेबाजी में कभी घाटे में न रहे। 1997 में उन्होंने कांग्रेस के कई विधायकों को साथ लेकर राष्ट्रीय लोकतांत्रिक कांग्रेस का गठन किया और विश्वास मत हासिल करने में कल्याण सिंह का साथ दिया। इस सहयोग के बदले वह कल्याण, राम प्रकाश गुप्ता, राजनाथ सिंह सरकार में प्रदेश में ऊर्जा मंत्री रहे। 2002 का चुनाव उन्होंने सपा के टिकट पर लड़ा और मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में परिवहन मंत्री भी बने।नरेश को सत्ता का साथ किस कदर भाता रहा है, इसकी बानगी 2007 का चुनाव रहा। इसमें वह हरदोई से सपा के टिकट पर जीते, लेकिन सरकार बहुजन समाज पार्टी की बनी। मई 2008 में उन्होंने सपा से नाता तोड़ लिया और मायावती के साथ हो गए। हालांकि नरेश बसपा के साथ भी न टिके। 2012 में जब उन्हें लगा जनता का रुख समाजवादी पार्टी की ओर है तो उन्होंने बेटे के साथ फिर सपा की सदस्यता ले ली। सपा ने 2012 में उन्हें राज्यसभा भेजा और अक्टूबर में आगरा में हुए अधिवेशन में उन्हें राष्ट्रीय महासचिव भी बनाया गया था। वह अपने बयानों को लेकर हमेशा विवादित रहे। राज्यसभा में उन्होंने ङ्क्षहदू देवी देवताओं के नाम से शराब के ब्रांडों के नाम गिनाए थे। कुलभूषण जाधव के लिए आतंकवादी शब्द के इस्तेमाल पर भी उनकी आलोचना हुई थी।
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