हरदोई :सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावे तो हो रहे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है। अब उच्च न्यायालय के आदेश से व्यवस्था में सुधार की उम्मीद जगी है। न्यायालय ने जारी आदेश में कहा कि सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भी अपना सरकारी अस्पतालों में ही उपचार करवाएंगे। जिला अस्पताल में ही चिकित्सकों और दवाओं का टोटा है तो फिर पीएचसी और सीएचसी की तो बात ही छोड़ दें। जिला अस्पताल में देखा जाए तो यहां पर चिकित्सकों के 21 पद हैं जिसमें 9 चिकित्सकों के पद रिक्त हैं। चिकित्सकों की कमी के कारण मरीजों को लाभ नहीं मिल पा रहा है और मरीजों को लखनऊ रेफर की पर्ची थमा दी जाती है। अस्पताल में जितने भी चिकित्सक हैं वे सभी समय पर ओपीडी में आकर मरीजों को परामर्श देते हैं और उसके बाद मरीजों को दवाएं उपलब्ध कराई जाती है। अस्पताल में आने वाले मरीजों की भीड़ बढ़ने के कारण लंबी कतार सुबह से ही लग जाती हैं। जिस कारण उन्हें कतार में घंटो लगे रहना पड़ता है और तब कहीं जाकर उन्हें चिकित्सक से परामर्श मिल पाता है। कभी-कभी गंभीर मरीज लाइन में लगे-लगे गश खाकर गिर जाते हैं इसके बाद चिकित्सक उन्हें आकस्मिक कक्ष में भर्ती करा देते हैं। मरीजों की भीड़ बढ़ने के कारण ही ओपीडी में बने तीन काउंटरों पर मरीजों की लाइन लगी रहती है और उसके बाद कहीं जाकर मरीजों को दवाएं मिलती हैं। लाइन में लगे-लगे मरीज और बीमार हो जाते हैं। पांच वर्षों से नहीं है फिजीशियन : जिला अस्पताल में फिजीशियन के दो पद हैं। पांच वर्षों से यहां पर तैनात फिजीशियन का स्थानांतरण होने के बाद से अस्पताल में कोई फिजीशियन नहीं है। जिस कारण अस्पताल में आने वाले मरीजों को लखनऊ रेफर कर दिया जाता है या उसे निजी क्लीनिक में चिकित्सक को दिखाने की सलाह दे दी जाती है। रेडियोलाजिस्ट न होने से बाहर से कराना पड़ा अल्ट्रासाउंड : जिला अस्पताल में रेडियोलाजिस्ट के दो पद हैं। यहां पर तैनात एक रेडियालाजिस्ट की सेवानिवृत्ति हो गई तथा दूसरे का स्थानांतरण हो गया। इस कारण मरीजों को बाहर से अपना अल्ट्रासाउंड कराना पड़ रहा है।
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