लखनऊ (K5 News)। गोरखपुर, कौशांबी और अब कैराना को देखें तो भाजपा उपचुनावों में लगातार हार रही है। /यह स्थिति भाजपा के मिशन-2019 पर बड़ा बैरियर है। इसे लांघना आसान नहीं है। अब इस जीत के बाद एकजुट होते विपक्ष को संजीवनी मिलना तय है। नूरपुर विधानसभा सीट पर अधिक वोट मिलने का बावजूद भाजपा की जीत का सिलसिला ठहरना धुव्रीकरण का संकेत देता है।
ज्यादा वोट मिलने पर भी हार-बिजनौर की नूरपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा की जीत का सिलसिला धुव्रीकरण के चलते ठहर गया। हालांकि इस सीट पर भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले अधिक वोट मिले। पूर्व विधायक लोकेंद्र सिंह वर्ष 2012 में नूरपुर से भाजपा के टिकट पर पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। अपनी कर्मठता व लोकप्रियता के चलते लोकेंद्र सिंह वर्ष 2017 में भी विजयी हुए थे। तब उन्होंने 78,951 वोट प्राप्त किए और सपा के नईमुल हसन को शिकस्त दी। लोकेंद्र का निधन से खाली सीट पर भाजपा ने उनकी पत्नी को उतारकर सहानुभूति कार्ड चला । भाजपा के खाते में वर्ष 2017 से दस हजार वोट ज्यादा आये लेकिन, विपक्षी एकजुटता के चलते मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण भारी पड़ा। भाजपा महामंत्री अशोक कटारिया का कहना है कि मुस्लिम बहुल वाली इस सीट पर वर्ष 2017 में बसपा के गौहर इकबाल को 45,791 वोट मिले थे और सपा के नईमुल हसन 66,289 मत पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे। इस बार भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की एकजुटता भारी पड़ी परंतु क्षेत्रीय जनता से अभूतपूर्व समर्थन मिला है।
हार भाजपा प्रबंधन की नाकामी का सबब -गोरखपुर, कौशांबी और अब कैराना को देखें तो भाजपा उपचुनावों में लगातार हार रही है। भाजपा के मिशन-2019 पर कैराना उपचुनाव परिणाम बड़ा बैरियर है। इसे लांघना आसान नहीं है। कैराना की हार की प्राथमिक समीक्षा में भाजपाई अब कुनबे की रार पर मुखर हैं। कैडर वोट व स्थानीय नेताओं को तवज्जो न देकर जिस तरह बाहरी नेताओं पर विश्वास जताया उससे जीत की रणनीति कारगर साबित नहीं हुई। सियासी दुनियादारों का मानना है कि भाजपा का फोकस जाट मतों पर ज्यादा रहा जबकि वह चुनाव के बहाव का अंदाजा नहीं लगा पाए। परिणाम बताते हैं कि मुस्लिम, दलित व जाट एकजुटता ने जीत में अहम भूमिका निभाई है। 
परम्परागत वोट पर लगाया दांव -कैराना उपचुनाव में भाजपा ने अपने परम्परागत वोट, गुर्जर व पिछड़ों पर दांव लगाया था। इस समीकरण में भाजपा को जाट वोट असहज कर रहे थे। वर्ष 2014 के चुनाव में जाट, दलित, पिछड़ा, अतिपिछड़ा, गुर्जर और परम्परागत वोट से हुकुम ङ्क्षसह ने साढ़े पांच लाख वोट का आंकड़ा पार किया था। उपचुनाव में भाजपा अनुसूचित जाति के वोट बैंक का नुकसान मानकर चल रही थी। हालांकि उम्मीद थी जाट, पिछड़ा व अतिपिछड़ा उसे मोदी-योगी के नाम पर मिल जाएगा। जाट वोटों को अंत तक भाजपा अपना मानती रही। पार्टी ने जाटों को साधने की तमाम कोशिश की। भाजपा का यह प्रयास उसके लिए आत्मघाती हो गया। अत्यधिक तवज्जो देने से पार्टी में ही अंतर्कलह पैदा हो गई। पार्टी के नेता पुरानी राजनीतिक अदावत पर एक-दूसरे को हराने में ही लग गए। वोट से ज्यादा कद की लड़ाई पूरे चुनाव में लड़ी गई। कोशिश किसी का कुर्ता ऊंचा करने और अपना उजला करने की रही। इस जंग में बाहरी बनाम स्थानीय ने आक्रोश को जन्म दिया। मतदान के दौरान सन्नाटा इसी का परिणाम है। गन्ना भुगतान को लेकर किसानों की नाराजगी ने इस आग में घी का काम किया। 
विपक्ष का साइलेंट प्रचार-उपचुनाव के परिणाम बताते हैं, महागठबंधन ने साइलेंट चुनाव लड़ा। इसके तहत मोदी-योगी का जवाब किसी बड़े नेता की सभा से नहीं दिया। महागठबंधन के बड़े नेताओं ने बयानबाजी तक नहीं की। बहनजी चुप रहीं, राहुल गांधी-अखिलेश भी शांत रहे। सभाओं से ज्यादा डोर-टू-डोर संपर्क को तवज्जो दी। गठबंधन रणनीतिक रूप से सपा मुस्लिम, बसपा दलित, अति पिछड़ों व पिछड़ों तक सीमित रही। चौ. अजित ङ्क्षसह-जयंत चौधरी केवल जाट तक सीमित रहे। उनकी कोशिश भावनात्मक रूप से बिरादरी को अस्तित्व बचाने और चौ. चरण ङ्क्षसह का नाम बचाने के लिए तैयार करने की रही। इसमें वह सौ फीसद सफल रहे। 
कुंद हुई ध्रुवीकरण की धार -कैराना व नूरपुर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रैलियां कराई गईं। कैराना में मुख्यमंत्री ने माहौल को ध्रुवीकरण की ओर मोडऩे के लिए बयान दिए, लेकिन बात नहीं बनी। बल्कि उनका दांव उलट ही पड़ा। मुस्लिमों का तो धु्रवीकरण हो गया, लेकिन हिंदू मतदात पूरी तरह बिखरता नजर आया। 
दिग्गजों का रहा जमावड़ा-भाजपा की ओर से कैराना में राष्ट्रीय महामंत्री रामलाल, सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल, उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य एवं प्रदेश अध्यक्ष महेंद्रनाथ पांडे ने पूरी मेहनत की। माना यह भी जा रहा है कि प्रत्याशी मृगांका सिंह पूरी तरह पार्टी के भरोसे रह गईं। इसके चलते वह वोटरों से कनेक्ट नहीं हो पाईं।
एसी कमरों में बनती रही रणनीति-चर्चा है कि भाजपाई वातानुकूलित कमरों में बैठकर रणनीति बनाते रहे। इससे इतर बाहरी एवं बड़े नेताओं पर हाईकमान ने ज्यादा भरोसा जताया गया, जबकि स्थानीय कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की गई।  
मंत्रियों के गढ़ में हारी भाजपा-कैराना लोकसभा क्षेत्र में दो राज्यमंत्री सुरेश राणा व धर्मसिंह सैनी हैं। गौरतलब यह भी है कि राज्यमंत्री धर्मसिंह के गढ़ में भी भाजपा बुरी तरह हार गई। नकुड़ विस में गुर्जर, मुस्लिम, अनुसूचित व सैनी वोटों की तादात ज्यादा है, जहां भाजपा घिर गई। राज्यमंत्री सुरेश राणा के गढ़ थानाभवन में भाजपा की बुरी गत हुई।
संजीव बालियान व सत्यपाल भी फिसले-म जफ्फरनगर दंगों के बाद डा. संजीव बालियान जाट समाज में आइकॉन बनकर उभरे। भाजपा हाईकमान ने भी उन्हें पूरी तरजीह दी। पार्टी ने उपचुनाव में जाट मतों को साधने के लिए बालियान और सत्यपाल पर भरोसा दिलाया, लेकिन ये दोनों चौधरी अजित का तिलिस्म नहीं तोड़ पाए। 
काम न आया दिग्गजों का दम-खम-लोकसभा चुनाव 2019 के सेमीफाइनल कहे जाने वाले नूरपुर विधानसभा के उपचुनाव में सहानुभूति की नैया भी भाजपा को पार नहीं लगा पाई। चुनाव जीतने के लिए हाईकमान ने भगवा ब्रिगेड के साथ प्रदेश के तमाम दिग्गज चुनावी रण में उतार दिए थे, लेकिन भाजपा को शिकस्त का सामना करना पड़ा। गोरखपुर व फूलपुर के बाद भाजपा ने नूरपुर व कैराना के उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया था। भाजपा ने प्रदेश के पंचायती राजमंत्री स्वतंत्र प्रभार चौधरी भूपेंद्र सिंह को चुनावी कमान सौंपी थी। भाजपा के लिए यह उपचुनाव कितना अहम था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सीएम योगी आदित्यनाथ, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सभा कराई गई। इससे इतर भाजपा राष्ट्रीय महामंत्री संगठन रामलाल, राष्ट्रीय सहा महामंत्री संगठन शिवप्रकाश, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बसंल, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय, प्रभारी व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, मंत्री गुलाबो देवी, मंत्री उपेंद्र तिवारी, मंत्री गिरीश चंद यादव, चेतन चौहान, बलदेव सिंह ओलख, सिंचाई मंत्री धर्मपाल सिंह सहित सांसद, विधायक व संगठन के पदाधिकारियों की हजारों की फौज लगाई गई।
प्रधानों पर दबाव का दांव भारी पड़ा-हर बूथ पर 21 सदस्यीय कमेटी के साथ संगठन के जिला स्तरीय नेताओं को भी लगाया गया। मंत्रियों व सत्ताधारी दल के नेताओं ने सत्ता का भी कम इस्तेमाल नहीं किया। पंचायती राजमंत्री के चुनाव प्रभारी होने के कारण सभी ग्राम प्रधानों व सचिवों पर पूरे चुनाव के दरम्यान तलवार लटकी रही। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि पंचायती राजमंत्री का प्रधानों पर अप्रत्यक्ष दबाव का दांव भारी पड़ गया। वहीं दूसरी तरफ सपा प्रत्याशी के पक्ष में राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की जनसभा तक नहीं कराई गई। सिर्फ सपा के चार एमएलसी आनंद भदौरिया, शशांक यादव, परवेज अली, उदयवीर ङ्क्षसह को एक-एक जोन की कमान सौंपी गई थी। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम के निर्देशन में पूर्व मंत्रियों, विधायकों व पदाधिकारियों को लगाया गया था।  
चुनाव से दूरी बनाए रहे श्रीकांत -जिले के प्रभारी मंत्री होने के बावजूद ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा नूरपुर उपचुनाव से दूर रहे। वह पूरे चुनाव में मात्र एक दिन कुछ घंटों के लिए डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के कार्यक्रम में आए थे, जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रम में नहीं आए। प्रभारी मंत्री का पूरे चुनाव में मात्र एक दिन आना भाजपा कार्यकर्ताओं को खटकता रहा।
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भारी -नूरपुर उपचुनाव में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भारी पड़ गई। दरअसल, प्रदेश सरकार के प्रवक्ता व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को जिले का प्रभारी मंत्री बनाया गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक, प्रभारी मंत्री कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देते हैं। कार्यकर्ताओं की एक भी बात नहीं सुनी जाती है। यहीं वजह है कि पिछले दिनों पहुंचे श्रीकांत शर्मा के बैठक में चंद कार्यकर्ता व पदाधिकारी ही पहुंचे। कार्यकर्ताओं में अंदरखाने ऊर्जा मंत्री को लेकर असंतोष है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार होने के बावजू प्रभारी मंत्री वह अपनी समस्या तक नहीं रख पाते हैं।
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