दर्द महज़ उतना नहीं होता
जितना उतर आता है आंखों में

उतना भी नहीं बस
जितना रिसता है साँसों में

दर्द महज़ उतना नहीं होता
कि दे सके कोई दवा जितनी

उतना भी नहीं बस
कि की जा सके दुआएं जितनी

दर्द बचा रहता है
खामोशी में,

उस अनकही में
जो खुद से भी नहीं कही गई कभी

वो सुबह के पहले की
शब का रंग

और शब से पहले की
शाम का धुँधलका सा

मन का डूबना
हंसी का भीग जाना

महसूस करो तो
होता है बस उतना ही...

जितना बाँट सके कोई
तो बचा रह जाए रेज़ा भर....

दर्द
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