आखिर कहाँ दब गयी लीज निरस्तीकरण पत्रावली
 पलियाकलाँ-खीरी। उप्र सरकार अवैध कब्जेदारों के कब्जों से शासकीय भूमियों को मुक्त करवाने हेतु वृहद स्तर पर प्रयासरत है वहीं सरकारी आदेशों के अनुपालन में स्थानीय प्रशासन भी भूमाफियाओं पर नकेल कसते हुऐ उन्हें नोटिस आदि देकर अवैध कब्जों से बेदखल करने का प्रयास कर रहा है लेकिन शासकीय आदेशों का सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर नहीं हो पा रहा है। इसी क्रम में इण्डो नेपाल के सीमावर्ती ग्राम बनगवाँ में सराकरी अनुदान भूमियों पर बनी मालनुमा दुकानों की तेजी से बढती संख्या व धडल्ले से चल रहा अवैध निर्माण शासन की मंशा एवं जिम्मेदार अधिकारियों की कार्यवाही पर स्पष्ट विरोधाभास सिद्ध करत है। बताते चलें कि उत्तर प्रदेश शासन के निर्देश पर नींद से जागे जिला प्रशासन ने अपने दामन को बचाते हुए बार्डर पर निर्माणाधीन अवैध मण्डी के दुकानदारों को लीज की भूमि बेंचने वाले थारुओं की लीज निरस्त करने की कार्यवाही आरम्भ करते हुऐ अवैध रुप से सरकारी अनुदान  की भूमि खरीदकर भारी भरकम दुकानें बनाने वाले दुकानदारों को तत्काल दुकानें उखाडनें का आदेश दिया गया था, लेकिन स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों एवं सुरक्षा विभागों से मिलकर तस्करी कि आरोपियों ने लीज भूमि पर पुनः दुकानों का निर्माण करवाना आरम्भ कर दिया है। जानकारी के अनुसार एक लाख रुपये प्रति दुकान के हिसाब से सरकारी अधिकारियों एवं दुकानदारों के मध्य मध्यस्तता करने वाले राजनैतिक संरक्षण प्राप्त पुलकितानंद उपनाम के स्थानीय तस्कर को देते हैं जो कि अवैध ट्राँस्पोर्ट का संचालक बताया जाता है, जानकारों के अनुसार एक पूर्व क्षेत्राधिकारी के सिंडी केट से जुडे उक्त तस्कर द्वारा पाक्षिकरुप से लगभग अट्रठारह लाख रु0 की लाइन अधिकारियों व सत्तापक्ष के नेताओं तक पहुँचाई जाती है जिसने भारत नेपाल सीमा के खीरी जनपद की कोतवाली गौरीफंटा के अंतर्गत मोहाना नदी के किनारे बिल्कुल नेपाल राष्ट्र से सटे हुए ग्राम बनगवां में अपना अड्डा बना रखा है। उक्त थारुग्राम अवैध बनगवाँ मण्डी के निर्माण का मामला अब और अधिक तूल पकडता दिखाई दे रहा है। लगभग पाँच साल पहले माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार वन विभाग द्वारा दायर की गयी याचिका की लम्बी सुनवाई के बाद गौरीफंटा मण्डी के अधिकांश दुकानदारों को बलपूर्वक मण्डी से हटाये जाने के बाद मार्च 2018 में वन विभाग अवैध कब्जेदार से ग्वारीफंटा मंडी को हटाने में पूर्णतयः सफल हो सका। अबैध कब्जों से बेदखल होने के बाद हरतरफ से थकहार कर नेपाली आमदनी के आदी इन दुकानदारों ने अपनी दबंगई के बल पर बनगवां के थारुओं को अनुदान में प्राप्त हुई जमीनों को खरीदकर बनगवां में लहलहाती फसलों को कटवाकर कृषि योग्य भूमि पर भारी भरकम पक्की दुकानों का निर्माण करवाना शुरु कर दिया। अगर इन दुकानों के निर्मित क्षेत्रफल और गोदामों को देख लिया जाए तो स्पष्ट हो जायेगा कि यह दुकानें हैं अथवा कोई शॉपिंग माल बनाया जा रहा है। वहीं नवनिर्वासित दुकानदारों ने भी बनगवाँ और चंदन चौकी मण्डी में पाँव जमाने के लिये सौदेबाजी आरम्भ कर दी है। विचारणीय प्रश्न है कि जिस गांव की आबादी ही महज लगभग पांच सौ के करीब है, वहां इन मॉलनुमा सैकडों दुकानों का क्या काम है ? उल्लेखनीय है कि जब गौरीफंटा मण्डी के दुकानदारों ने थारुओं की जमीन पर अपनी दुकानें बनवाने का प्रयास किया था तब प्रशासन का तर्क था कि थारुओं को यह जमीनें जीवनयापन के लिये दी गयी हैं। उक्त जमीनों को थारु बिक्री, किराये अथवा व्यापार हेतु किसी और को नहीं दे सकेंगे। जिसके लिये लेखपालों के माध्यम से गौरीफंटा से लेकर चंदनचौकी तक के थारुओं को सूचना दी गयी थी। उक्त क्षेत्र में बसे गैरथारु लोगों के प्रतिष्ठानों की भूमि एवं व्यापार सम्बंधित दस्तास्वेजों को भी खंगाला गया और निर्मित/निर्माणाधीन भवनों की जांच करवायी गयी और मण्डी बसाने वाले प्रशासनिक सख्ती से भयभीत होकर शांत बैठ गये। किन्तु अब माहौल अपने अनुकूल देखकर वही दुकानदार प्रशासनिक साठ-गांठ से पुनः अपने मंसूबों को अमलीजामा पहनाने में जोर शोर से लग गए हैं। जिसकी परिणति के रुप में बार्डर के निकट तेजी से अवैध मॉल बनते दिख रहे हैं और कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इनकी सुध लेने वाला नहीं है। या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि यह सारा खेल प्रशासनिक मशीनरी की मिली भगत से राजनैतिक संरक्षण में चल रहा हो? हाल ही में वन विभाग की भूमि पर बसी चंदनचौकी मण्डी के व्यापारियों व क्षेत्रीय विधायक रोमी साहनी के मध्य बने समीकरणों के बाद यकायक थमी कार्यवाही जनमानस में चर्चा का विषय है, सहज प्रश्न है कि बार्डर क्षेत्र में इतने बडे पैमाने पर हो रहे अवैध मण्डी के निर्माण के प्रति अधिकारियों की खामोशी संदिग्ध प्रतीत होती है। गौरतलब है कि गवर्नमेन्ट ग्रान्ट एक्ट में प्रावधान है कि यदि कोई भी अनुदान प्राप्तकर्ता सरकार से अनुदान में प्राप्त हुई भूमि का विक्रय, ठेका, किराये आदि पर देता है तो उसको दिया गया अनुदान निरस्त किया जा साकता है, लेकिन मौजूदा प्रकरण में अनुदान की भूमि को खुलेआम बेंचा जा रहा है जो कि कहीं न कहीं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा साबित हो सकता है, लेकिन उक्त प्रकरण पर कोई भी अधिकारी मुंह खोलने को तैयार नहीं है और न ही उक्त लीज रिस्तीकरण पत्रावली के बाबत कोई जानकारी दे रहे हैं जिसमें अनुदान भूमियों को बेंचने के अट्ठारह ग्रामीणों की लीज निरस्त करने की संस्तुति तत्कालीन तहसीलदार अशोक कुमार द्वारा उपजिलाधिकारी विजय बहादुर को प्रेषित की गयी थी।

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