बढ़ती उम्र के साथ,
घटने लगती है
फेहरिस्त शिकायतों की
सिकुड़ने लगता है
सीना शिकवों का
मुस्कुराहटों में पड़ी झुर्रियों के समानांतर
पीड़ाएं धंस जाती है
और गहरी
आंखों के तले पड़े गड्ढों में
मुस्कुराहटें ओढ़ लेती है
चादर ख्वाहिशों में पड़ी परतों की
घटता है कद अहम का
बढ़ती सोच की रफ्तार के साथ
समझ होती है कुछ विस्तृत
सिकुड़ती नज़र के दायरों में
हँसी हो जाती मद्धिम
खुश्क होते अश्कों के पहलू में
ढलने लगती है शरारतें
जिम्मेदारियों के शामियाने में
बढ़ती उम्र के साथ..
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