वायरल सन्देश : एक किसान की बेटी ने वह कर दिया जो बड़े बड़े घर की बेटी करने के लिए सपने देखती हैं हम बात कर रहे हैं 14 वर्ष की इल्मा अफरोज की जिसने अपने मेहनत से साबित कर दिया कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती जब हम 14 वर्ष की उम्र में होते हैं तो हम बड़े-बड़े सपने देखते हैं और क्या हो अगर उसी बीच कोई बड़ा हादसा हो जाए तो सपनों पर पानी फिर जाता है ऑल इंडिया सिविल सर्विसेज में 217वीं रैंक हासिल करने वाली इल्मा अफ़रोज़ की जिंदगी में भी कुछ ऐसा ही हुआ पर मजबूत इच्छाशक्ति के आगे परिस्थितियों को घुटने टेकने पड़े और वह देश की करोड़ों बेटियों के लिए मिसाल बन गई ।
इल्मा जब 14 वर्ष की थी तो उसके सर पर से उसके पिता का साया हट गया परिवार की आय का एकमात्र सोर्स खेती था जो उसके पिता करते थे अब इस बड़े हादसे के कारण वह पूरी तरह से टूट गई अब इल्मा ने मां के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया परिस्थितियां चाहे कितने भी कठिन हो पर उसके ढूंढ इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी ना थी ।
अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह दिन रात मेहनत करती थी और साथ ही ट्यूशन पढ़ा कर पैसे एकत्र करती थी डॉक्टर अब्दुल कलाम को आदर्श मानने वाले इल्मा कहती हैं ‘मेरे सपनों ने मुझे कभी सोने नहीं दिया’ इल्मा अफरोज ने 12वीं की पढ़ाई मुरादाबाद से पूरी की उसके बाद उसका दाखिला दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हो गया वह इतनी मेघावी छात्रा थी कि उसे विदेशों से स्कॉलरशिप भी मिलने लगा साथ ही प्रतिष्ठित पेरिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं क्लिंटन फाउंडेशन में भी काम करने का मौका मिला जो विश्व की बड़ी संस्थाओं में से एक है ।
पर वह सब छोड़ कर अपने देश वापस आ गई उसके जीवन में कहीं ना कहीं देश की सेवा करने का एक जुनून सवार था तो उसने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया भले ही उसके पास किताबों की कमी थी और कोचिंग के लिए उसके पास रुपयों की कमी थी पर उसने तैयारी शुरू कर दी।
एक कहावत तो आपने सुनी होगी की मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती इल्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ उसके मेहनत रंग लाई और अपने पहले ही प्रयास में इल्मा अफरोज ने 217वीं रैंक हासिल कर सफलता का परचम लहरा दिया एक मध्यमवर्ग परिवार की लड़की ने अपने सपनों को पूरा कर ही लिया बतौर आईपीएस वह अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं उसका कहना है महिलाओं को न्याय दिलाना हमेशा मेरी प्राथमिकता में शामिल रहेगा देश की सबसे कठिन परीक्षा में जब एक किसान की बेटी फतह हासिल करती है तो यह उसके परिवार के लिए ही नहीं देश के लिए गर्व की बात है इलमा जैसी देश की बेटियों पर आज पूरा देश को गर्व है।
इल्मा जब 14 वर्ष की थी तो उसके सर पर से उसके पिता का साया हट गया परिवार की आय का एकमात्र सोर्स खेती था जो उसके पिता करते थे अब इस बड़े हादसे के कारण वह पूरी तरह से टूट गई अब इल्मा ने मां के साथ खेतों में काम करना शुरू कर दिया परिस्थितियां चाहे कितने भी कठिन हो पर उसके ढूंढ इच्छा शक्ति के आगे कुछ भी ना थी ।
अपने सपनों को पूरा करने के लिए वह दिन रात मेहनत करती थी और साथ ही ट्यूशन पढ़ा कर पैसे एकत्र करती थी डॉक्टर अब्दुल कलाम को आदर्श मानने वाले इल्मा कहती हैं ‘मेरे सपनों ने मुझे कभी सोने नहीं दिया’ इल्मा अफरोज ने 12वीं की पढ़ाई मुरादाबाद से पूरी की उसके बाद उसका दाखिला दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हो गया वह इतनी मेघावी छात्रा थी कि उसे विदेशों से स्कॉलरशिप भी मिलने लगा साथ ही प्रतिष्ठित पेरिस स्कूल ऑफ इंटरनेशनल और ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इतना ही नहीं क्लिंटन फाउंडेशन में भी काम करने का मौका मिला जो विश्व की बड़ी संस्थाओं में से एक है ।
पर वह सब छोड़ कर अपने देश वापस आ गई उसके जीवन में कहीं ना कहीं देश की सेवा करने का एक जुनून सवार था तो उसने सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया भले ही उसके पास किताबों की कमी थी और कोचिंग के लिए उसके पास रुपयों की कमी थी पर उसने तैयारी शुरू कर दी।
एक कहावत तो आपने सुनी होगी की मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती इल्मा के साथ भी ऐसा ही हुआ उसके मेहनत रंग लाई और अपने पहले ही प्रयास में इल्मा अफरोज ने 217वीं रैंक हासिल कर सफलता का परचम लहरा दिया एक मध्यमवर्ग परिवार की लड़की ने अपने सपनों को पूरा कर ही लिया बतौर आईपीएस वह अपनी जिम्मेदारी को समझते हैं उसका कहना है महिलाओं को न्याय दिलाना हमेशा मेरी प्राथमिकता में शामिल रहेगा देश की सबसे कठिन परीक्षा में जब एक किसान की बेटी फतह हासिल करती है तो यह उसके परिवार के लिए ही नहीं देश के लिए गर्व की बात है इलमा जैसी देश की बेटियों पर आज पूरा देश को गर्व है।
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