खोजी पत्रकारिता के बहाने कुछ टीवी पत्रकार अपने आपको सब कुछ समझने लग जाते है। कई निर्णय तो वे खुद ही दे देते है। हाल ही में श्री देवी का पार्थिव शरीर मुम्बई पहुचा और उनकी अंतिम यात्रा शुरू हुयी। उसे ऐसे दर्शाया गया जैसे कोई क्रिकेट मैच या फ़िल्मी एवार्ड शो हो।  अभी देखिये शाहरुख खान आये, अमिताभ बच्चन उस लाल गाडी में है, विद्या बालन आ गयी है, सबाना आजमी और जावेद अख्तर आ गए है इत्यादि। 
शर्म आनी चाहिए हम पत्रकारो को, लेकिन आएगी नही। क्योकि टीवी पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चूका है कि नोजवान पत्रकार अपने आपको ईश्वर समझने लग गए है। कई समाचारो में आप स्वयं देख सकते है। 
सच पूछिये तो टीवी पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चुका है की आज मुझे कई लोग मिलते हैं, जो याद करते है पुराना जमाना। जब दूरदर्शन के अलावा भारत में कोई और चैनल नही हुआ करता था। 
माना की समाचार कम और सरकारी प्रचार ज्यादा हुआ करते थे उन दिनों, लेकिन कम से कम किसी दिवंगत अभिनेत्री की इस तरह दुर्गति तो नही होती थी। 
किसी संस्था की शक्ति जितनी ज्यादा होती है, उस संस्था के कंधो पर उतना ही बोझ होता है की वह अपनी शक्ति को सोच समझकर, जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल करे। 
लोकतांत्रिक देश में मिडिया पर पाबंदी लगाना सही नही है, लेकिन शायद समय आ गया है की हम पत्रकार स्वयं तय करे की हमारा दायरा कहा तक होना चाहिए। 

आप अपनी राय जरूर दे......

*आचार्य डॉ प्रदीप द्विवेदी*
वरिष्ठ सम्पादक ( इंडेविन टाइम्स समाचार पत्र) एवं आध्यात्मिक लेखक
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